Saturday, January 15, 2011

बैतूल से गुजरे थे श्री राम ..?

बैतूल से गुजरे थे श्री राम ..?
- रामकिशोर पंवार
बहुचर्चित रामसेतु परियोजना को लेकर उपजे विवाद की कड़ी में मध्यप्रदेश की भाजपा सरकार ने भी उस रामपथ को खोजने की शुरूआत की है जो अयोध्या से चित्रकुट होता हुआ दण्डकारण क्षेत्र से पंचवटी होते हुआ रामेश्वरम जाता है . भगवान श्री राम जिस दण्डकारण क्षेत्र से होते हुये श्री लंका तक पहँुचे थे उस पथ में आने वाले क्षेत्रो में सूर्य पुत्री ताप्ती नदी का बारह लिंग क्षेत्र भी आता है ..? इसी तथ्य को दावे के साथ प्रस्तुत करने का प्रयास किया है बैतूल जिले के उन चंद ताप्ती भक्तो ने जिनका दावा है कि भगवान श्री राम बैतूल जिले के जंगलो से होते हुये माँ ताप्ती को पार कर ही पंचवटी पहँुचे थे . अब यह प्रश्र उठता है कि क्या भगवान श्री राम बैतूल से गुजरे थे..? बैतूल के इतिहास से भली भांती परिचित कुछ जानकारो का दावा है कि श्री पंचवटी से लंका तक पहँुचने वाले उस रामपथ का बैतूल जिले से भी नाता है क्योकि  सतपुड़ा पर्वत की हरी-भरी सुरम्य वादियों में ऊंची-ऊंची शिखर श्रेणियों के मध्य से कल - कल कर बहती सूर्य पुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच धारा में बने बारह लिंगो की स्थापना के पीछे जो आम प्रचलित कथाये एवं किवदंतियाँ तथा उससे मेल खाती एतिहासिक पुरात्तवीक अवशेषो के अनुसार भगवान श्री राम ने इस रावण के पुत्र मेघनाथ के द्रविड़ राज्य में राक्षसो से रक्षार्थ हेतू अपने अराध्य देवाधिदेव भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए आकाश गंगा सूर्यपुत्री ताप्ती नदी के किनारे रात्री विश्राम कर दुसरे दिन प्रात: सुर्योदय के पहले ताप्ती नदी में के बीचो - बीच बहती जल धारा में डूबे पत्थरो पर बारह लिंगो की आकृति को जन्म देकर उनका विधिवत पूजन एवं स्थापना की थी . भगवान श्री राम के साथ इस पूजन कार्य के पूर्व माता सीता ने जिस स्थान पर ताप्ती नदी के पवित्र जल से स्नान किया था वह आज भी सुरक्षित है तथा लोग उसे सीता स्नानागार के रूप में पूजन करते है . महाभारत की एक कथा के अनुसार मृत्युपरांत कर्ण से भगवान श्री कृष्ण ने कुछ मांगने को कहा लेकिन दानवीर कर्ण का कहना था कि भलां मैं आपसे क्यूँ कुछ माँगु मैने तो अभी तक लोगो को दिया ही है तब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना पूर्णस्वरूप दानवीर कर्ण को दिखा कर कहा अब तो कुछ मांग लो . कर्ण ने कहा कि यदि प्रभु आप मुझे कुछ देना ही चाहते हो तो मेरी अंतिम इच्छा को पूर्ण कर दो जो यह है कि मेरा अंतिम संस्कार उस पवित्र नदी के किनारे हो जहाँ पर आज तक को शव न जला हो .. तब भगवान श्री कृष्ण ने अपनी दिव्य दृष्टिï से ताप्ती जी के किनारे अपने अंगुठे के बराबर ऐसी जगह देख जहाँ पर भगवान श्री कृष्ण ने पैरो के एक अंगुठे पर खड़े रह कर अपनी हथेली पर दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार किया. रामयुग में जटायु तथा कृष्ण युग में कर्ण दो ही ऐसे जीव रहे जिन्होने भगवान राम और श्याम की बाँहो में दम तोड़ा. प्रस्तुत कथा से इस बात का पता चलता है कि ताप्ती कितनी पवित्र नदी थी . दुसरी दृष्टिï से देखा जाये तो पता चलता है कि महाभारत की इस घटना के अनुसार सूर्यपुत्र दानवीर कर्ण का अंतिम संस्कार भी उसकी अपनी बहन ताप्ती के किनारे सम्पन्न हुआ. सूर्य पुत्री ताप्ती का महत्व इस क्षेत्र कि जनता एवं पुराणो में गंगा - नर्मदा के समकक्ष है . पुराणो में इस बात का जिक्र है कि गंगा जी में स्नान का , नर्मदा जी के दर्शन का तथा सूर्य पुत्री माँ ताप्ती का नाम मात्र स्मरण करने से उनके समकक्ष पूर्ण  लाभ मिलता है. जनश्रुत्रि एवं जानकारो तथा इतिहास के विशेषज्ञो के अनुसार इस द्रविड़ राज्य में असुरी शक्ति का जबरदस्त आंतक रहता था वे किसी भी ऋषि - मुनियो के पूजा पाठ यहाँ तक की उनके द्घारा करवाये जाने वाले यज्ञो तक में व्यवधान पैदा कर देते थे. असुरो के अराध्य देवाधिदेव महादेव को भगवान श्री राम ने अपने द्घारा चौदह वर्ष के वनवास के दौरान वनगमण के दौरान स्वंय तथा अनुज लक्ष्मण एवं जीवन संगनी सीता की रक्षा के लिए देवाधिदेव महादेव की जहाँ - तहाँ पूजा अर्चना की. असुर केवल भोलनाथ भगवान जटाशंकर महादेव के पूजन कार्य में व्यवधान नहीं डालते थे इसी मंशा के तहत मर्यादा पुरूषोत्तम श्री राम ने राम पथ के दौरान शिव लिंगो का पूजन किया. ताप्ती नदी की बीच धारा में पाषण शीला पर बारह शिव लिंगो की स्थापना की. वैसे आमतौर पर रामायण में श्री राम युग में श्रीराम द्घारा मात्र रामेश्वरम में ही शिव लिंग की स्थापना का जिक्र सुनने एवं पढऩे को मिलता है लेकिन पूरे विश्व के बारह ज्योर्तिलिंगो को एक ही स्थान पर वह भी सूर्यपुत्री माँ ताप्ती नदी की बीच तेज बहती धार में मौजूद पाषण शीलाओं पर ऊकेरा जाना तथा उनका आज भी मूल स्वरूप में बने रहना किसी चमत्कार से कम नहीं है . वैसे आम तौर पर कहा जाता है कि भगवान श्री राम ने शिवलिंगो की स्थापना करके यह संदेश दिया कि देवाधिदेव शिव ही राम के ईश्वर है जबकि शिव भगवान ने ही कहा कि राम ही ईश्वर है . बरहाल बात रामेश्वरम के ज्योर्तिलिंग की हो या ताप्ती नदी बीच तेज बहती धारा के मध्य पाषणशीलाओं पर स्थापित बारह लिंगो की भगवान श्री राम ने अपने अराध्य देवाधिदेव जटाशंकर उमापति महादेव के प्रति अपने अगाह प्रेम को जग जाहिर कर डाला .
        ताप्ती नदी के बारे में पौराणिक कथाओं में उल्लेखित कथा के बारे में पता चला कि एक समय वह था जब कपिल मुनि से शापित जलकर नष्टï हो पाषाण बने अपने पूर्वजों का उद्धार करने इस पृथ्वी लोक पर, गंगा जी को लाने भागीरथ ने हजारों वर्ष घोर तपस्या की थी. उसके फलस्वरूप गंगा ने ब्रम्ह कमण्डल (ब्रम्हलोक से) धरती पर, भागीरथ के पूर्वजों का उद्धार करने आने का प्रयत्न तो किया परंतु वसुन्धरा पर उस सदी में मात्र ताप्ती नदी की ही सर्वत्र महिमा फैली हुई थी . ताप्ती नदी का महत्व समझकर श्री गंगा पृथ्वी लोक पर आने में संकुचित होने लगी, तदोउपरांत प्रजापिता ब्रम्हा विष्णु तथा कैलाश पति शंकर भगवान की सूझ से देव ऋषि परमपिता ब्रम्हा के पुत्र नारद ने ताप्ती महिमा के सारे ग्रंथ चोरी कर लिये जिसके चलते उन्हे पूरे शरीर में कोढ़ हो गई थी जिससे उन्हे मुक्ति भी सूर्यपुत्री करी जन्म स्थली मुलताई के नारद कुण्ड में स्नान उपरांत मिली थी. आज भी ताप्ती जल में एक विशेष प्रकार का वैज्ञानिक असर पड़ा है, जिसे प्रत्यक्ष रूप से स्वंय भी आजमाईश कर सकते है. ताप्ती जल में मनुष्य की अस्थियां एक सप्ताह के भीतर घुल जाती है. इस नदी में प्रतिदिन ब्रम्हामुहुर्त में स्नान करने से समस्त रोग एवं पापो का नाश होता है. तभी तो राजा रघु ने इस जल के प्रताप से कोढ़ जैसे चर्म रोग से मुक्ति पाई थी. ग्राम खेड़ी सांवलीगढ़ से ग्यारह किलोमीटर दूर त्रिवेणी भारती बाबा की तपोभूमि ताप्ती घाट जो इस क्षेत्र में तो क्या संपूर्ण बैतूल जिले में बहुधा जानी पहचानी जगह है. विकासखंड भैंसदेही के अंतर्गत आने वाले इस स्थान से पूर्व दिशा की ओर यहां से लगभग चार किलोमीटर पैदल चलकर या फिर मोटर वाहनों से भी पहुंचा जा सकता है. बारहलिंग नामक स्थान पर जो ताप्ती नदी के तट पर स्थित है, यहां कि प्राकृतिक छठा सुन्दर मनमोहक दृश्य आने-जाने वाले यात्रियों का मन मोह लेते है. घने हरियाले जंगलो से आच्छादित प्रकृति की अनुपम छटा बिखरेती हुई ताप्ती नदी शांत स्वरों में पूर्व से पश्चिम दिशा की ओर बहती है . चौदह वर्ष के वनवास के दौरान बारह लिंग नामक इस स्थान पर ठहरे हुए भगवान श्री राम ने  स्वंय अपने अराध्य देवाधिदेव महादेव के बारह लिंगो की कार्तिक माह की पूर्णिमा के दिन पाषण शीला पर आकृति ऊकेरी थी जो आज भी ज्यों - की त्यों है. राम निर्मित उक्त बारह शिवलिंगो तथा सीता स्नानागार आज भी लोगो की आस्था के केन्द्र है राज्य सरकार को चाहिए कि जब वह रामपथ को खोज रही है तब इन .शुशुप्त रूप से आज भी विद्यमान है इन बारह लिंगो एवं सीता स्नानागार की उपेक्षा क्यो ..? कथाओ एवं पुराणो के अनुसार श्री राम ने वनो में उगने वाले फलो में से एक को जब माता सीता को दिया तो उन्होने इसका नाम जानना चाहा तब भगवान श्री राम ने कहा कि हे सीते अगर तुम्हे यह फल यदि अति प्रिय है तो आज से यह सीताफल कहलायेगा. आज बैतूल जिले के जंगलो एवं आसपास की आबादी वाले क्षेत्रो में सर्वाधिक संख्या में सीताफल पाया जाता है. 

मां ताप्ती जागृति मंच जिला बैतूल मां सूर्य पुत्री ताप्ती की महिमा

बैतूल। बैतूल जिले के इतिहास के बारे में जिले की आधी से ज्यादा आबादी को पता नहीं है कि जिले का सबंध किस युग- काल - समय से कब - कब रहा है। जिले में घटित मान्यताओं को लेकर कुछ जानकार एवं इतिहासकार तथा पुरात्तव विभाग के विशेषज्ञ अब इस बात पर भी चिंतन मनन करने में जुट गये है कि मध्यप्रदेश के आदिवासी बाहुल्य बैतूल जिले का प्राचिन एवं पुरात्तव तथा पौराणिक इतिहास क्या है। बैतूल जिले के काफी प्राचिन इतिहास से सूर्यवंश का रिश्ता भी किस तरह जुडा हुआ है। बैतूल जिले में बहने वाली ताप्ती नदी जिसे आदिगंगा - भद्रा - तापी - तपती - तापती सहित दर्जनो नामो से पुकारा जाता है उसका जन्म स्थान मुलतापी  - मुलताई बैतूल जिले में ही स्थित है। जिले का प्राचिन इतिहास बताने के लिए हम कुछ प्रमाण प्रस्तुत कर रहे है। जिले में रहने वाली जनजातियों का सबंध किसी न किसी युग एवं काल से मिलता -जुलता है। सतयुग के समय विदर्भ की राजकुमारी दमयंती के साथ विवाह के बाद उसके त्याग के बाद जंगलो में भटकने वाले राजा नल ने जिले के मासोद ग्राम के पास स्थित तालाब की मछली को भूनने का प्रयास किया था लेकिन मछली उछल कर तालाब में जा गिरी। इस क्षेत्र में प्रचलित कथाओं में नल - दमयंती के संदर्भ में यह कहा जाता है कि   ऊंचा खेडा पर पटटन गांव , मंगलराजा मोती - दमोती रानी बरूवा बामन कहे कहानी , हमसे कहती उनसे सुनती सोलह बोल की एक कहानी , सुनो  महालक्ष्मी रानी , विदर्भ का यह क्षेत्र जिसे महाभारत में चीचकदरा जो वर्तमान में खिचलदरा कहलाता है इस क्षेत्र का राजा कीचक था जो कि विराट के राजा का साला था । कीचक अखडा का नाम कीचकधरा जो वर्तमान में बैतूल एवं पडोसी राज्य महाराष्ट्र के अमरावती जिले के परतवाडा क्षेत्र से लगा हुआ चीखलदरा कहलाता है। राजा कीचक की कुल देवी वेराट देवी का स्थान बैतूल जिले के प्रभात पटट्न गांव में था जो प्राचिन में परपटटन गांव के रूप में जाना जाता था। महाभारत के पूर्व अज्ञातवास के दौरान में पांचो पाडंव राजा कीचक के राज्य में स्थित सालबर्डी की गुफाओं में भी रहे जो कि अभी भी मौजूद है। पांडव पुत्र जीवन संगनी पर बुरी नज़र रखने के कारण ही पांडव पुत्र भीम ने कीचक को मारा था। बैतूल जिले में त्रेतायुग में भगवान श्री राम ने ही मां सूर्य पुत्री ताप्ती नदी के किनारे शिवधाम बारहलिंग में बारह शिवलिंगो की स्थापना ताप्ती के तट पर पत्थरो पर भगवान विश्वकर्मा की मदद से की थी जो अभी भी मौजूद है। इस स्थान पर सीता स्न्नानागार भी मौजूद है जहां पर माता सीता ताप्ती के तट पर स्नान करती थी। इस क्षेत्र में वनो में सीताफल पाये जाते है जिनका उल्लेख रामायण में भी है। रामायण की चौपाई में कहा गया है कि माता सीता पुछती है कि प्रभु अति प्रिय फल  मोरा तब भगवान ने इसका नाम सीता जी के नाम पर सीताफल दिया था। कुरूवंश के संस्थापक राजा कुरू की माता ताप्ती का बैतूल जिले में जन्मस्थान के कई प्रमाण है जैसे नारद टेकडी , नारद कुण्ड , सूर्य कुण्ड , धर्मकुण्ड , पाप कुण्ड , शनिकुण्ड , सात कुण्ड बैतूल जिले में ताप्ती जन्मस्थली में मौजूद है। बैतूल जिले में आज भी सबसे अधिक शिवलिंग तापती नदी के किनारे है जो कि इस बात के प्रमाण है कि रावण पुत्र मेघनाथ ने तापती के किनारे कठीन तपस्या की थी। यह क्षेत्र रावण के बलाशाली पुत्र मेघनाथ का राज्य का हिस्सा रहा है इसलिए यहां के मूल निवासी आज भी गांवो में मेघनाथ - रावण - कुंभकरण की पूजा करते है। ताप्ती नदी के किनारे देवलघाट नामक स्थान भी है जहां से देवता बीच नदी में स्थित सुरंग से स्वर्ग को प्रस्थान किये थे। इस जिले में चन्द्र पुत्री पूर्णा का भी जन्मस्थान  पुष्पकरणी है जो कि भैसदेही के पास है। बैतूल जिले का प्राचिन इतिहास इस बात को प्रमाणित करता है कि सूर्य एवं चन्द्रवंश की दो देव कन्याओं का इस जिले में उदगम स्थान है तथा इस जिले से ही वे निकल कर भुसावल के पास मिलती है। बैतूल जिले में कई प्राचिन अवशेष भी है जिन्हे आज जरूरत है समझने एवं परखने की ।
            मां ताप्ती जागृति मंच जिला बैतूल मां सूर्य पुत्री ताप्ती की महिमा को जन - जन तक पहुंचाने के लिए प्रयासरत है। कोई भी जिझासु व्यक्ति कभी भी सम्पर्क कर मिल कर जानकारी प्राप्त कर सकता है। नेट पर भी ताप्ती महिमा के नाम से एवं ताप्ती जी के नाम पर कई कथायें दे चुका है।
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Betul. Betul district, about the history of the district more than half the population do not know what the district regard Age - period - the time when - when is. Assumptions about the place in the district and some knowledgeable historians and experts of the Department of Purattw to contemplate now reflect on the fact that drawing the Betul district of Madhya Pradesh tribal concentration and Purattw Preachin's history and mythology. Betul district, the relation Suryvansh how much Preachin history is connected. Betul district Tapti river flowing in the Adi Ganga - Bhadra - TAPI - Tapti - Tapti Dergno Nmo including what is called the birthplace Multapie - Mulatai in Betul district is located. Preachin to tell the history of the district we have some evidence are presented. Regard to the tribes living in the district a rough age and period duplicate is. During the Golden Age of Vidarbha after his marriage to Princess Damayanti discarded after wandering in the forests of the district Masod King taps located near the village pond but the fish tried roasting the fish in the pond to be jumping kernel. Popular stories tap into the region - in terms of Damayanti said that the high Pattten Kheda village Mangleraja beads - Damoti Queen Brua Baman story tells us, she hears him telling a story of sixteen, listen Mahalaxmi queen's Vidarbha area in the Mahabharata, which currently Akichaldra Chiackadra Keechaka king of the region was called the King's brother in law, which was vast. Keechaka Akda name Kaichkadharo Betul and neighboring state that is currently in Amravati district of Maharashtra engaged Chiakaldra Partwada area is called. King Keechaka Verat Divine Goddess of the total space of Betul district in the morning Preachin Parpattten Paton was in the village was known as the village. Mahabharata during the pre Atञatvasa Pancho Peadana King Keechaka Asaalberdi located in the state are in caves that still exists. Pandav son Sanaganie life because of the bad track Keechaka killed by Bhima Pandava son. Lord Sri Rama in Betul district Tretayaug the sun mother daughter Tapti river Tapti Sivadham Barahling setting on the banks of the twelve Sivalingo Patthro who was with the help of the Lord Vishwakarma is still present. There is also the place where Mother Sita Sita Ssnnanagar on the banks of Tapti bath used. Veno is the custard apple found in this area that is mentioned in Ramayana. Chaupeai mother Sita in the Ramayana states that the Lord very dear fruit Mora Puchti the law in the name of God the custard apple was named Sita. Kuruvansh founder of Betul district, the birthplace of King Kuru Tapti many of the parents as evidence Takadi Narada, Narada kunda, Sun reservoir, Dhermkund, sin reservoir, Ashnekund, Tapti birthplace of seven reservoir is present in Betul district. Betul district is still the most lingam Tapti River, which is evidence that Ravana did penance son Mehanath difficult side of the Tapti. The region of the state's share of Ravana Mehanath Balashali son is so even in the native villages today Mehanath - Ravana - Kuanhkaaran worship. Deoalhat Tapti River is a place called River located in the center tunnel where the Lord made the heavens were departing. Purna Chandra daughter in the district which is also the birthplace Pushpakarni Heisadehi have it. Betul district Preachin history proves the fact that the sun and the two Dev Chandravansh girls place of origin in the district and the district they can get to get to Bhusawal. Betul district, many of whom also remains Preachin need today to understand and test.
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